Sunday, May 31, 2009

हम करें राष्ट् आराधन

हम करें राष्ट् आराधन 
तन से, मन से, धन से, 
तन-मन-धन-जीवनसे, 
हम करें राष्ट् आराधन ………………।।…धृ


अन्तर से, मुख से, कृती से, 

निश्र्चल हो, निर्मल-मति से, 

श्रद्धा से, मस्तक-नत से, 

हम करें राष्ट् अभिवादन…………………। १


अपने हंसते शैशव से, 

अपने खिलते यौवन से, 

प्रौढता पूर्ण जीवन से, 

हम करें राष्ट् का अर्चन……………………।२


अपने अतीत को पढकर, 

अपना ईतिहास उलटकर, 

अपना भवितव्य समझकर, 

हम करें राष्ट् का चिंतन…।………………।३


है याद हमें युग युग की,  जलती अनेक घटनायें, 

जो मां के सेवा पथ पर, आई बनकर विपदायें, 

हमने अभिषेक किया था, जननी का अरिशोणित से, 

हमने शृंगार किया था, माता का अरिमुंडो से,

हमने ही ऊसे दिया था, सांस्कृतिक उच्च सिंहासन, 

मां जिस पर बैठी सुख से, करती थी जग का शासन, 

अब काल चक्र की गति से, वह टूट गया सिंहासन, 

अपना तन-मन-धन देकर, हम करें पुन: संस्थापन………………।४


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